मंच पर जैसे ही परदा खुलता है क्षीरसागर में भगवान विष्णु भक्त भगीरथ की पुकार सुनकर विह्वल हो जाते हैं और गंगा को धरती पर जाने का आदेश देते हैं। परदे पर जैसे ही हेमामालिनी का आगमन होता है दर्शकों ने उनका जोरदार स्वागत किया।वेगवती गंगा अपने संपूर्ण तेज और आवेग के साथ धरती की ओर बढ़ती हैं। उनके वेग से संपूर्ण ब्रहांड पर प्रलय की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। भगवान शिव सृष्टि की रक्षा के लिए गंगा को अपनी जटाओं में बांध लेते हैं। ब्रह्मा की विनती पर भगवान शिव गंगा को जटाओं से मुक्त करते हैं। इसके बाद वह भगीरथ के पुरखों को तारते हुए आगे बढ़ती हैं। समय के चक्र के साथ सतयुग, त्रेता और द्वापर के बाद कलयुग में गंगा की दयनीय दशा का मंचन बेहद मार्मिक रहा। ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है कि गंगा धरती को छोड़कर जाने लगती हैं लेकिन भक्तों की पुकार सुनकर वह फिर रुक जाती हैं। वह कलयुग को श्राप देते हुए कहती हैं कि मैं फिर से निर्मल होकर कलकल बहूंगी।